जयपुर. ‘दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोई’, ‘माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय’, ‘साईं इतना दीजिए जामे कुटूम समाय, मैं भी भूखा न रहूं साधू ना भूखा जाए’ सहित 45 कालजयी रचनाओं और गीतों से पद्मश्री शेखर सेन ने संत कबीर के जीवन को मोनोएक्ट म्यूजिकल प्ले के माध्यम से जीवंत किया। इस प्रस्तुति के साथ बिड़ला ऑडिटोरियम में आयोजित चार दिवसीय जयपुर सिटीजन फोरम फेस्टिवल का समापन हुआ। नाटक में बताया कि एक मुस्लिम दंपति नीरू और नीमा को कबीर तालाब में मिलता है। भाईचारा बढ़ाने का दिया संदेश कार्यक्रम मे प्रस्तुति के माध्यम से शेखर ने लोगों को सद्भावना, प्रेम, समानता और भाईचारा बढ़ाने का संदेश दिया। साथ ही उन्होंने कहा कि 'भगवान को पाने के लिए आपको बच्चा बनना पड़ेगा, औरत में सिर्फ प्रेम होता है। पागल की खासियत होती है कि वो डरता नहीं और जो डरता नहीं वो कभी मरता नहीं। उन्होंने कार्यक्रम के बीच लोगों को साधू का अर्थ समझाते हुए कहा कि साधू वो होता है जिसमें प्रेम, स्नेह हो, जो विरोध होने पर भी आपकी बात सुने। मां ने बताया हर मोड़ पर काम आएगा नृत्य नाटक खत्म होने के बाद शेखर सेन ने अपनी मां का जिक्र करते हुए जर्नी शेयर की। उन्होंने बताया कि उनकी मां को बेटी चाहिए थी लेकिन किस्मत से मैं हो गया। पांच वर्ष तक मेरी मां ने मुझे फ्रॉक पहनाई। बड़ा होने पर मां ने खाना, सिलाई, कड़ाई सहित घर के सारे काम सिखाए। साथ ही उन्होंने बताया कि मां ने मुझे 50 लड़कियों के बीच अकेला कथक सीखने के लिए भेज दिया था। उस समय कुछ लड़कियां मुझे बहुत चिढ़ाती थी, तो मैं मां के पास आकर रोता था, लेकिन मां ने मुझे समझाया कि नृत्य
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