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China Economy: बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स के आंकड़ों के अनुसार सरकार और राज्य के स्वामित्व वाली कंपनियों के विभिन्न स्तरों सहित कुल ऋण 2022 तक चीन के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 300 प्रतिशत तक पहुंच गया, यह अमेरिकी स्तर को भी पार कर गया। 2012 में यह 200 प्रतिशत से कम था।

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दुनिया की फैक्ट्री कहलाने वाला चीन (China)। पाकिस्तान-श्रीलंका जैसे देशों को अपने कर्ज के जाल में फंसाने वाला चीन। एशिया और दुनियाभर में अपनी धौंस दिखाने वाले चीन। लगता है इसकी हालत अब खराब हो रही है। आर्थिक मंदी की चपेट में घिरते चीन की रफ्तार थमने लगी है। चीन की अर्थव्यवस्था कोविड के बाद से थमती जा रही है। चीन की कंपनियां दिवालिया हो रही हैं। वहां बेरोजगारी चरम पर है। रियल एस्टेट कंपनियों की हालत खराब है। विदेशी निवेशक चीन से मुंह मोड़ रहे हैं। चीन पूरी दुनिया से अलग चाल चल रहा है। जहां दुनियाभर के देश महंगाई से जूझ रहे हैं तो वहीं चीन डिफ्लेशन (Deflation) से गुजर रहा है। वहां वस्तुओं की कीमतें घट रही हैं। लोगों की खरीदने की क्षमता घटती जा रही है। चीनी कंपनियां तबाह हो रही हैं। जहां दुनिया भर के केंद्रीय बैंक ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं तो चीन दरों में कटौती कर रहा है। लेकिन ऐसा नहीं है कि चीन की इस हालात का असर दुनिया पर नहीं पड़ेगा। चीन की खस्ताहाल का असर भारत और दुनिया के देशों पर पड़ने वाला है। चीन लगभग 25 साल से लगातार अपने विकास के दम पर दुनियाभर में धौंस जमाने में लगा है। 1.4 बिलियन की आबादी वाला चीन दुनियाभर में अपने सामानों का डंका बजवा रहा है। चीन वैश्विक अर्थव्यवस्था के इंजन के तौर पर काम करता है, लेकिन अब यह इंजन कमजोर हो रहा है। चीन का ग्रोथ घटता जा रहा है और बेरोजगारी बढ़ रही है। कंपनियों पर कर्ज बढ़ता जा रहा है। दुनिया की फैक्ट्री कहलाने वाला चीन (China) अब आर्थिक संकट (Economic Crisis) का सामना कर रहा है। चीन के राज्यों पर कर्ज उसके सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 44% हो गया है। चीन के करीब 31 राज्यों पर 782 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। चीन की रियल एस्टेट कंपनी कंट्री गार्डन को अरबों डॉलर का नुकसान हुआ है । दुनिया की दिग्गज कंपनियों ने चीन में मोटा पैसा लगा रखा है, जिसका उन्हें फायदा भी मिला है, लेकिन चीन की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था का असर अब उनपर होने वाला है। कमोडिटी के कस्टमर्स को देखें तो चीन दुनिया में नंबर 1 उपभोक्ता है। बीसीए रिसर्च के हालिया रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दशक में चीन वैश्विक आर्थिक विकास का अकेले 40 फीसदी से ज्यादा का भागीदार रहा है। ऐसे में चीन की गिरती इकॉनमी का असर वैश्विक स्तर पर होना तय है। चीन भारत समेत दुनियाभर के देशों से जुड़ा है। चीन दुनिया भर में बेचे जाने वाले सामानों का एक बड़ा हिस्सा बनाता है। अगर चीन की इकॉनमी ठप हुई तो इसका असर दुनियाभर के देशों पर होगा। भारत भी इससे बच नहीं सकेगा। चीन की हालत का असर चीनी सामानों के निर्यात पर पड़ेगा। व्यवसायों में होने वाले निवेश पर इसका असर पड़ने वाला है। चूंकि चीन ग्लोबल ट्रेड का बड़ा हिस्सेदार है, ऐसे में चीन में मांग घटने पर दुनिया भर में मांग घटेगी । चीन की अर्थव्यवस्था जिस तरह से लुढ़क रही है, दुनियाभर की कंपनियों और इंडस्ट्री पर इसका असर पड़ेगा। ग्लोबल इकोनॉमी की स्थिति और बिगड़ेगी। अगर भारत की बात करें तो चीन की खस्ताहाल से भारत भी अछूता नहीं रह सकेगा। भारत के लिए यह आपदा और अवसर के साथ-साथ मुश्किल भी है। चीन में कमोडिटी का उत्पादन घटाने से इनकी कीमतों में उछाल देखने को मिल सकता है। हालांकि ये भारत के लिए एक अवसर भी है। भारत के लिए वैश्विक स्तर पर चीन का विकल्प बनकर उभरने का मौका है। ऐसे मौके पर भारत वैश्विक आपूर्ति में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा सकता है। चीन की लड़खड़ाती इकॉनमी के बीच भारत दुनियाभर के लिए सामान और सेवाएं उपलब्ध करवाने वाला एक वैकल्पिक स्त्रोत बनकर उभर सकता है। चीन की अर्थव्यवस्था बिगड़ने से विदेशी कंपनियां चीन के बजाय भारत का रुख कर सकेंगी। चीन भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। साल 2021-22 में भारत के कुल व्यापार में चीन की हिस्सेदारी 11.2 फीसदी यानी करीब 116 अरब डॉलर की रही है। चीन की अर्थव्यवस्था अगर बिगड़ती है तो निर्यात प्रभावित होगा। सस्ता चीनी सामान न मिलने से भारत के छोटे व्यापारियों को नुकसान होगा। इस समय भारत फार्मास्यूटिकल्स, सौलर फोटोवोल्टिक सेल्स, ईवी बैटरी पार्ट, सेमीकंडक्टर जैसे सामानों के लिए पूरी तरह से चीन पर निर्भर है। अगर चीन की अर्थव्यवस्था बिगड़ती है तो इन सामानों की आपूर्ति प्रभावित होगी।