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ISRO के वैज्ञानिक, पैसो के लिए नहीं देश के लिए काम करते हैं हम में से कोई करोड़पति नहीं- जी. माधवन

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के पूर्व निर्देशक जी माधवन नैयर ने कहा हमारे वैज्ञानिक पैसों के लिए नहीं देश के लिए काम करते हैं। भारत का मिशन चंद्रयान-3 सफलतापूर्वक पूरा हो चुका है। इस पर ISRO और उनके वैज्ञानिकों को देश-विदेश से लगातार बधाइयां भी मिल रही है। लेकिन इसरो के इस सफलता पर राजनीति भी तेज होती जा रही है। कांग्रेस नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बाद अब कांग्रेस के संगठन महासचिव और राज्य सभा सांसद के सी वेणुगोपाल ने वैज्ञानिकों के सैलरी को लेकर सवाल उठाया है। उन्होंने सरकार पर वैज्ञानिकों को 17 महीने से सैलरी नहीं देने का आरोप लगाया है। इसी बीच ISRO के पूर्व चीफ जी. माधवन नायर ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि ISRO के वैज्ञानिक पैसों के लिए नहीं देश के लिए काम करते हैं। हम में से कोई भी करोड़पति नहीं है। हमारे वैज्ञानिक विकसित देशों के वैज्ञानिकों के पांचवें हिस्से के बराबर वेतन पाते हैं। इसरो के वैज्ञानिकों संयमित जिंदगी जीते हैं अंतरिक्ष मिशन के लिए भारत घरेलू तकनीक का उपयोग करता है माधवन से जब सवाल किया गया कि आखिर क्या कारण है कि भारत का अंतरिक्ष मिशन दूसरे देशों की तुलना में काफी कम बजट में पूरा हो जाता है। इस पर उन्होंने कहा कि भारत अपने अंतरिक्ष अभियानों के लिए घरेलू तकनीक का उपयोग करता है और इससे उन्हें लागत को काफी कम करने में मदद मिली है। उन्होंने कहा कि भारत के अंतरिक्ष मिशन की लागत अन्य देशों के अंतरिक्ष अभियानों की तुलना में 50 से 60 प्रतिशत कम है। नायर ने कहा कि चंद्रयान-3 की सफलता भारत के ग्रहों की खोज शुरू करने के लिए पहला कदम है और यह एक अच्छी शुरुआत की है। मीडिया ने जब वैज्ञानिको के सैलरी को लेकर उनसे सवाल किया तो उन्होंने कहा कि इसरो के वैज्ञानिकों में कोई करोड़पति नहीं है और वे हमेशा बहुत सामान्य और संयमित जिंदगी जीते हैं। वे वास्तव में पैसे के बारे में चिंतित नहीं हैं, बल्कि अपने मिशन के प्रति भावुक और समर्पित हैं। इसी तरह हमने अधिक ऊंचाइयां हासिल कीं। 'इसरो में वैज्ञानिकों, तकनीशियनों और अन्य कर्मचारियों को दिया जाने वाला वेतन वैश्विक स्तर पर दिए जाने वाले वेतन का बमुश्किल पांचवां हिस्सा है।