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पाकिस्तान की संसद ने आधिकारिक गोपनीयता (संशोधन) विधेयक और पाकिस्तान सेना (संशोधन) विधेयक नामक दो विधेयकों को मंजूरी दी थी। रविवार को सरकार ने राष्ट्रपति की कथित सहमति के बाद उन्हें कानून के रूप में अधिसूचित कर दिया। कानून बनते ही इस पर विवाद शुरू हो गया। राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने इन विधेयकों पर असहमति जताई थी लेकिन बिल पर अधिकारियों ने हस्ताक्षर कर दिए।

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पाकिस्तान में इन दिनों राष्ट्रपति और कार्यवाहक सरकार में ठनी हुई है। पड़ोसी देश में इस टकराव की वजह दो विधेयक हैं। दरअसल, रविवार को आधिकारिक गोपनीयता (संशोधन) विधेयक और पाकिस्तान सेना (संशोधन) विधेयक नामक दो विधेयक राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद कानून बन गए। उसी दिन राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने दावा किया कि उन्होंने तो इन पर हस्ताक्षर ही नहीं किए। अब राजनीतिक दल राष्ट्रपति की कार्य शैली पर सवाल उठाते हुए उनके इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। वहीं नाफरमानी के कारण राष्ट्रपति ने अपने सचिव को बर्खास्त कर दिया है। इस बीच हमें जानना जरूरी है कि आखिर पाकिस्तान में राष्ट्रपति और सरकार के बीच क्या चल रहा है? राष्ट्रपति क्या दावा कर रहे हैं? सरकार का रुख क्या है? आखिर दो विधेयक क्या हैं? आइये समझते हैं... पाकिस्तान में राष्ट्रपति और सरकार के बीच क्या चल रहा है? पाकिस्तान में इस महीने की शुरुआत में भंग होने से पहले संसद ने आधिकारिक गोपनीयता (संशोधन) विधेयक और पाकिस्तान सेना (संशोधन) विधेयक नामक दो विधेयकों को मंजूरी दी थी। रविवार को सरकार ने राष्ट्रपति की कथित सहमति के बाद उन्हें कानून के रूप में अधिसूचित कर दिया। कानून बनते ही इस पर विवाद शुरू हो गया। राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने इन विधेयकों पर असहमति जताई थी लेकिन बिल पर अधिकारियों ने हस्ताक्षर कर दिए। अब कानून का रूप ले चुके दोनों विधेयकों की वैधता सवालों के घेरे में है। यह घटनाक्रम ऐसे समय में हुआ है जब पाकिस्तान राजनीतिक संकट और अनिश्चित राजनीतिक भविष्य का सामना कर रहा है। देश में चुनाव पर भी संशय है तब तक कार्यवाहक सरकार ही देश को चलाएगी। पीएमएल-एन सुप्रीमो नवाज शरीफ और पीपीपी के आसिफ जरदारी गठबंधन और इमरान खान के नेतृत्व वाले दो प्रमुख राजनीतिक गुट भी आपस में उलझे हुए हैं। उधर आर्थिक संकट भी है जिसका पाकिस्तान पिछले एक साल से अधिक समय से सामना कर रहा है। राष्ट्रपति अल्वी ने क्या दावा किया? विवाद को हवा तब मिली जब राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने रविवार को एक्स (पहले ट्विटर) पर पोस्ट कर कहा कि उन्होंने आधिकारिक गोपनीयता (संशोधन) विधेयक, 2023 और पाकिस्तान सेना (संशोधन) अधिनियम 2023 पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। क्योंकि वह दोनों ही बिलों से असहमत थे। अल्वी ने अपने कर्मचारियों पर धोखा देने का आरोप लगाया। एक एक्स पोस्ट में उन्होंने कहा, 'जैसा कि खुदा मेरा गवाह है, मैंने दोनों विधेयकों पर हस्ताक्षर नहीं किए क्योंकि मैं इन कानूनों से असहमत था। मैंने अपने कर्मचारियों से विधेयकों को अप्रभावी बनाने के लिए निर्धारित समय के भीतर बिना हस्ताक्षर किए वापस करने को कहा। मैंने उनसे कई बार पूछा कि क्या उन्हें वापस कर दिया गया है और मुझे आश्वस्त किया गया था कि उन्हें वापस कर दिया गया है। हालांकि मुझे अब पता चला कि मेरे कर्मचारियों ने मेरी इच्छा और आज्ञा को नहीं माना। मैं उन लोगों से माफी मांगता हूं जो प्रभावित होंगे।' अल्वी के मुताबिक, उन्होंने अपने कर्मचारियों से विधेयकों को अप्रभावी बनाने के लिए निर्धारित समय के भीतर बिना हस्ताक्षर किए वापस करने को कहा था। तो सरकार क्या कह रही है? सोमवार को इस विवाद पर पाकिस्तान कानून मंत्रालय का बयान आया जिसमें उसने कहा कि राष्ट्रपति से कोई आपत्ति नहीं मिलने के कारण विधेयक कानून में बदल गए। कार्यवाहक सरकार में कानून मंत्री अहमद इरफान असलम ने कहा कि 'राष्ट्रपति ने सोचा कि उन्होंने बिल लौटा दिए हैं। वास्तव में संशोधन विधेयक राष्ट्रपति से कानून मंत्रालय को प्राप्त नहीं हुए थे।' आगे मंत्री ने कहा कि अगर किसी विधेयक पर 10 दिन के भीतर राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर नहीं किया जाता है तो यह कानून बन जाएगा क्योंकि यह माना जाएगा कि इसे उनकी सहमति मिल गई है। दरअसल, पाकिस्तानी संविधान के अनुच्छेद 75 (1) के अनुसार, जब कोई विधेयक राष्ट्रपति के समक्ष उनकी सहमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है, तो उनके पास विधेयक को मंजूरी देने या अपने अवलोकन के साथ कानून और न्याय मंत्रालय को विधेयक वापस करने के लिए 10 दिन का समय होता है। विरोधी दल क्या आपत्ति जता रहे हैं? सेना और गुप्त कानूनों से संबंधित दो महत्वपूर्ण विधेयकों पर हस्ताक्षर करने से इनकार करने के बाद पक्ष विपक्ष भी आमने-सामने हैं। इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के नेता बाबर अवान ने पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश उमर अता बंदियाल से कार्रवाई करने की मांग की। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति देश का प्रमुख होता है। वह सेना का सर्वोच्च कमांडर है। यह एक गंभीर अपराध है। यह संवैधानिक अवज्ञा है। यह एक बहुत बड़ा राजद्रोह है। वहीं पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (पीपीपी) और पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) ने राष्ट्रपति के इस्तीफे की मांग की। पीपीपी के प्रवक्ता फैसल करीम कुंडी ने इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण और अल्वी को राष्ट्रपति पद के लिए अयोग्य व्यक्ति बताया और दावा किया कि उन्हें नहीं पता कि उनके आसपास क्या हो रहा है। पीपीपी उपाध्यक्ष शेरी रहमान ने कहा कि यह घटनाक्रम अल्वी के राष्ट्रपति बने रहने की क्षमता पर सवाल उठाता है। क्या वह यह कहना चाह रहे हैं कि किसी और ने उनकी नाक के नीचे से विधेयक पर हस्ताक्षर किए हैं। रहमान ने कहा कि अगर ऐसा है, तो राष्ट्रपति को इस्तीफा दे देना चाहिए। पीएमएल-एन नेता और पूर्व वित्त मंत्री इशाक डार ने अल्वी के बयान को अविश्वसनीय बताया और उनके इस्तीफे की मांग की। उन्होंने कहा, 'नैतिकता के अनुसार अल्वी को इस्तीफा देना चाहिए, क्योंकि वह अपने कार्यालय को प्रभावी ढंग से, कुशलतापूर्वक और नियमों के अनुसार चलाने में विफल रहे हैं।' आखिर दोनों विधेयक क्या हैं? नेशनल असेंबली से मंजूरी के बाद आधिकारिक गोपनीयता (संशोधन) विधेयक (ओएसए) 2023 और पाकिस्तान सेना (संशोधन) विधेयक 2023 सीनेट में पेश किए गए थे। ट्रेजरी सदस्यों ने बिलों की आलोचना की थी, जिसके बाद सीनेट अध्यक्ष ने बिलों को स्थायी समिति को भेज दिया था। बाद में दोनों बिलों के कुछ विवादास्पद खंड हटा दिए गए और विधेयकों को सीनेट में फिर से पेश किया गया। मंजूरी के बाद इन्हें राष्ट्रपति अल्वी के पास हस्ताक्षर के लिए भेजा गया, जिसके बारे में राष्ट्रपति ने दावा किया है कि उन्होंने बिलों पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। इन कानूनों में प्रावधान है कि सरकारी हैसियत में प्राप्त की गई कोई ऐसी जानकारी जिससे देशहित और सुरक्षा को नुकसान पहुंच सकता है, उसे जाहिर करने वाले या उसे उजागर करने का कारण बनते वाले को पांच साल तक की सजा हो सकती है। इसके साथ ही विधेयक में ये भी प्रावधान है कि कोई सैन्य अधिकारी सेवानिवृत्ति या इस्तीफा देने या फिर हटाए जाने के बाद पांच साल तक राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा नहीं ले सकता है। दोनों बिल विवादास्पद इसलिए माने जा रहे हैं कि इनसे सैन्य और सुरक्षा प्रतिष्ठान की शक्तियां बढ़ेंगी जो पहले से ही देश में सबसे शक्तिशाली है। माना जाता है कि सेना सीधे तौर पर पाकिस्तान को चलाती है। बीते 76 साल में कई बार सेना ने देश की सत्ता अपने हाथ में ली है। यहां तक कि जब सेना सीधे तौर पर देश पर शासन नहीं कर रही हो तब भी इसे अत्यधिक प्रभावशाली माना जाता है और कहा जाता है कि कुछ सबसे महत्वपूर्ण नीति और रणनीति के पीछे इसका हाथ होता है।