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Pankaj Tripathi Interview: फिल्म 'ओएमजी 2' को दर्शक खूब पसंद कर रहे हैं।जानें ऐसे में अभिनेता का क्या कहना है

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फिल्म ‘गदर 2’ के साथ रिलीज हुई अक्षय कुमार, पंकज त्रिपाठी और यामी गौतम अभिनीत फिल्म 'ओएमजी 2' को दर्शक खूब पसंद कर रहे हैं। रिलीज के दिन के बाद से ही फिल्म का कारोबार लगातार बढ़ता जा रहा है। इस फिल्म को लेकर अभिनेता पंकज त्रिपाठी को एक ही बात का मलाल है कि अगर फिल्म को ‘ए’ सर्टिफिकेट नहीं मिला होता तो यह फिल्म टीनएजर्स तक भी पहुंचती जिनके लिए यह फिल्म बनाई गई है। पंकज त्रिपाठी ने इस फिल्म को लेकर ‘अमर उजाला’ से खास बातचीत की। ओएमजी 2' को लेकर सेंसर बोर्ड ने जो आपत्ति जताई, कहीं न कहीं सवाल यह उठता है कि सेंसर बोर्ड में ऐसे व्यक्तियों को रखना चाहिए जिन्हे सिनेमा की समझ हो। जो बदले दौर के सिनेमा को समझ सके। इस बारे में आपका क्या कहना है? सेंसर बोर्ड में ऐसे फैसले लेने वाले लोगों का चयन कहां से और कैसे होता है. मुझे नहीं पता है। मैं अभिनेता हूं, मैं सिर्फ अभिनय तक सीमित हूं, एक्टिंग करता हूं और घर चला जाता हूं। मेरी फिल्म कहां आएगी, कब रिलीज होगी, किस ओटीटी पर आएगी, इन सबसे मेरा कोई वास्ता नहीं रहता है। पता नहीं सेंसर बोर्ड में कौन लोग होते हैं जो तय करते हैं। हां, फिल्म को ‘ए’ सर्टिफिकेट मिला तो मुझे निराशा जरूर हुई थी। इस फिल्म का विषय टीनएजर्स के लिए है, अगर यह फिल्म उन्हीं तक नहीं पहुंचेगी तो क्या कहें? और, वह हमारे हाथ में नहीं है। ओएमजी 2' को लेकर सेंसर बोर्ड ने जो आपत्ति जताई, कहीं न कहीं सवाल यह उठता है कि सेंसर बोर्ड में ऐसे व्यक्तियों को रखना चाहिए जिन्हे सिनेमा की समझ हो। जो बदले दौर के सिनेमा को समझ सके। इस बारे में आपका क्या कहना है? सेंसर बोर्ड में ऐसे फैसले लेने वाले लोगों का चयन कहां से और कैसे होता है. मुझे नहीं पता है। मैं अभिनेता हूं, मैं सिर्फ अभिनय तक सीमित हूं, एक्टिंग करता हूं और घर चला जाता हूं। मेरी फिल्म कहां आएगी, कब रिलीज होगी, किस ओटीटी पर आएगी, इन सबसे मेरा कोई वास्ता नहीं रहता है। पता नहीं सेंसर बोर्ड में कौन लोग होते हैं जो तय करते हैं। हां, फिल्म को ‘ए’ सर्टिफिकेट मिला तो मुझे निराशा जरूर हुई थी। इस फिल्म का विषय टीनएजर्स के लिए है, अगर यह फिल्म उन्हीं तक नहीं पहुंचेगी तो क्या कहें? और, वह हमारे हाथ में नहीं है। ‘ओएमजी’ में परेश रावल ने काम किया था। जब इस फिल्म का ऑफर आया तो आपके मन में क्या चल रहा था? कुछ नहीं, एक महत्वपूर्ण कहानी है। मुझे लगा कि इस फिल्म का हिस्सा बनना चाहिए। फिल्म में अक्षय सर है, उनका बैकअप है, उनको कहानी पसंद थी। मेरे लिए सौभाग्य था कि मुझे इस फिल्म में काम करने का मौका मिला। इससे बड़ी मेरे लिए और क्या बात हो सकती है। देखा जाए पूरी फिल्म आपके और यामी गौतम के कंधे पर टिकी हुई है, क्या कहना चाहेंगे? इसका पूरा क्रेडिट फिल्म के निर्देशक अमित राय को जाता है। 'ओएमजी 2' की कहानी ही अमित राय ने ऐसी लिखी है कि हमारे किरदार पसंद किए जा रहे हैं। फिल्म की स्क्रिप्ट हमारे लिए मैप जैसी होती है, उसी के हिसाब से हमें यात्रा करनी होती है, मार्ग दर्शन के लिए निर्देशक तो होते ही हैं। इसमें हमारा बहुत ही कम योगदान है। इसने मैंने मालवा की बोली अपने संवादों में बोली है। इसके लिए इंदौर के रहने वाले विक्रम मेरे कोच बने। वह डेढ़ महीने मेरे साथ ही रहे और सिखाते रहे कि किस संवाद को कैसे बोलना है, इसलिए इसका क्रेडिट उनको ही जाता है। आज फिल्म की सफलता से सभी खुश है। जब आप गांव में नाटकों में काम करते थे, खास करके महिला किरदार, तब परिवार और गांव के लोगों की क्या प्रतिक्रिया होती थी? यह सही बात है कि हम लोग जिस पारिवारिक पृष्ठभूमि आते है, नाटक करना और ऊपर से महिला किरदार निभाना अच्छा नहीं माना जाता है। लेकिन हमारे पिता जी कुछ नहीं बोलते थे। उनका तो यही कहना था कि जो अच्छा लग रहा है करो। मेरे घर में तो अभी भी किसी चीज का विरोध नहीं हुआ है। हम पूरी तरह से खुले माहौल में पले बढ़े हैं। एनएसडी के बाद आप अभिषेक बच्चन की फिल्म 'रन' में नजर आए। किस तरह से उस फिल्म से जुड़ना हुआ था? ऐसा कुछ नहीं कि उस फिल्म में मैंने कोई छाप छोड़ दी थी। जब लोग आज की फिल्मों को देखते हैं, तब उनको याद आता है कि मैने फलां फिल्म में भी काम किया था। फिल्मों में एक-एक दो-दो सीन करके यहां तक पहुंचा हूं। यह हमारी जीवन की यात्रा है, करते रहते हैं और आगे बढ़ते रहते हैं। यह काम का एक हिस्सा है। तब मैं दिल्ली में था एक दोस्त की पहचान कास्टिंग डायरेक्टर से थी, उसकी वजह से फिल्म में काम मिला था। इसके बाद आपने प्रकाश झा की फिल्म 'अपहरण' की। वह भी बिहार से ही है। एक प्रदेश से होने के नाते काम मिलने में कुछ सहूलियत होती होगी? फिल्म इंडस्ट्री में किसी से मिलकर कोई भी सहूलियत नहीं होती है। यहां आपकी प्रतिभा चलती है। और, पहले तो प्रतिभा भी नहीं चलती है क्योंकि दो चार मिनट के सीन में क्या प्रतिभा दिखा देंगे ? प्रतिभा दिखाने के लिए एक अच्छा सा लिखा किरदार होना चाहिए। लेकिन आपकी मेहनत और ईमानदारी दिखती है। मैं देखता हूं कि एक छोटा सीन कोई कलाकार मेहनत करके कर रहा है तो डायरेक्टर तय करता है कि एक और अच्छा सा शॉट लेकर रख लेते हैं और एडिटिंग टेबल में तय करते हैं कि रखना है कि नहीं। क्योंकि उस आदमी का काम के प्रति जुनून और शूटिंग के दौरान उसका व्यवहार कैसा है, प्रभावित करता है। आपने 'रावण' में मणि रत्नम और प्रियदर्शन की फिल्म 'आक्रोश' में काम किया। सिनेमा को लेकर दोनों निर्देशकों की एक अलग सोच रही है। कैसे अनुभव रहे इनके साथ काम करके? प्रियदर्शन और मणि रत्नम सर के साथ काम करके मैंने बहुत कुछ सीखा है। दोनो अलग स्कूल है, सिनेमा को लेकर सोच और काम करने का तरीका बहुत अलग है। मैं खुद को भाग्यशाली मानता हूं कि दोनों के साथ साउथ में तीन-तीन महीने तक रहा। दोनों मुझे बहुत प्यार करते हैं, क्योंकि उन दोनों ने मेरी काम के प्रति समर्पण की भावना और मेरी मेहनत को नोटिस किया था। मैं सेट पर आकर चुपचाप बिना हिले डुले बैठ जाता था। शॉट नहीं होता तो देखता रहता था कि काम का तरीका क्या है? अगर इस चीज को ऐसा किया गया तो क्यों किया गया। बिना किसी से पूछे खुद से सवाल करता था और खुद ही उन सवालों का जवाब ढूंढता था कि ऐसा हुआ होगा । मैं खुश किस्मत हूं कि अलग -अलग अलहदा किस्म के निर्देशकों के साथ काम किया अनुराग कश्यप की फिल्म की फिल्म 'गैंग ऑफ वासेपुर' से हिंदी सिनेमा में लोग आपको पहचानने लगे। जब फिल्म में सुल्तान कुरैशी की भूमिका आपको ऑफर की गई, तब आपके मन में क्या चल रहा था? उस समय तो मैं ऐसी स्थिति में नहीं था कि सोच समझकर फिल्में करूं। जो काम मिलता था, कर लेते थे। उस समय तो सरवाइव करना जरूरी था। कला तो बाद की बात है। पहले जीना जरूरी है, उसके बाद कला आती है। इसलिए मुझे जो भी फिल्में ऑफर होती थी कर लेता था। आपकी एक फिल्म 'न्यूटन' ऑस्कर तक जाते जाते रह गई। इस फिल्म से जुड़ी कुछ यादें शेयर करना चाहे? 'न्यूटन' बहुत अच्छी फिल्म थी, इस फिल्म ने मुझे नेशनल अवार्ड दिया। यह फिल्म मेरे दिल के लिए बहुत खास है। वह ऑफ बीट सिनेमा थी और बॉक्स ऑफिस पर भी चल गई थी। नेशनल अवार्ड के साथ -साथ छोटी फिल्म होने के नाते एक बड़ा कलेक्शन का काम किया था। इस फिल्म के बाद मुंबई में लोग मुझे कमर्शियल एक्टर के तौर पर ट्रीट करने लगे। लोगों को लगने लगा कि ऐसी फिल्में चल भी जाती हैं और लोग देखना भी पसंद करते हैं। यह फिल्म तीन चार सौ स्क्रीन में रिलीज हुई थी और उस समय एक दो बड़ी फिल्मों को मात दे दिया था। टीवी से निकल कर मैं फिल्मों में आया था। टीवी में डेली सोप करके थक गया था। 'मैं अटल हूं' से जुड़ी कुछ खास यादें शेयर करना चाहे? इस फिल्म में भी मैने उतनी ही मेहनत की है, जितनी अपनी हर फिल्मों में करता हूं। मुझे लगता है कि जब यह फिल्म आएगी और लोग देखेंगे तो उस मेहनत का मूल्यांकन होगा कि वह मेहनत कितनी सार्थक हुई है। मैं अपनी सोच समझ और विवेक के हिसाब से हर रोल में 200 प्रतिशत देना चाहता हूं। उसमे भी मैंने यही किया है। वह फिल्म भी मेरे लिए बहुत खास फिल्म है।