ओडिशा के बालासोर में हुए भीषण रेल हादसे के बाद घटनास्थल पर पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि दोषियों को बख़्शा नहीं जाएगा. उन्होंने कहा, "कल शाम को एक भयंकर हादसा हुआ, असहनीय वेदना मैं अनुभव कर रहा हूं. इस यात्रा में अनेक राज्यों के नागरिकों ने कुछ न कुछ गंवाया है. कई लोगों ने अपना जीवन खोया है. हादसा बहुत दर्दनाक, मन को विचलित करने वाला है." शुक्रवार साम बालासोर में बाहानगा बाज़ार रेलवे स्टेशन के पास कोलकाता से चलकर चैन्नई तक जाने वाली कोरोमंडल एक्सप्रेस, एक अन्य ट्रेन सर एम विश्वेश्वरैया- हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस और एक मालगाड़ी की टक्कर हुई. ये हादसा किन परिस्थितियों में हुआ अभी तक ये पूरी तरह स्पष्ट नहीं हैं. इस हादसे में अब तक 260 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और ये संख्या और बढ़ने की आशंका है. हादसे के बाद भारतीय रेलवे की सुरक्षा प्रणाली को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं. रेल मंत्री के इस्तीफ़े की मांग? हादसे के बाद रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव पर सवाल उठ रहे हैं. तृणमूल कांग्रेस के नेता अभिषेक बनर्जी ने हादसे के बाद सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा, “केंद्र सरकार विपक्ष के नेताओं की जासूसी पर करोड़ों रुपये ख़र्च कर रही है लेकिन ऐसे हादसे रोकने के लिए ट्रेनों में एंटी कॉलिज़न डिवाइस लगाने की ज़रूरत को नज़रअंदाज़ कर रही है.” उन्होंने कहा, “सरकार राजनीतिक समर्थन बढ़ाने के लिए वंदे भारत एक्सप्रेस और नए बने रेलवे स्टेशन ख़ूब दिखा रही है लेकिन सुरक्षा उपायों को नज़रअंदाज़ कर रही है. रेल मंत्री को इस्तीफ़ा दे देना चाहिए.D कांग्रेस ने भी उठाए सवाल वहीं कांग्रेस नेता अधीरंजन चौधरी ने भी सरकार पर सवाल उठाये हैं. उन्होंने कहा, “सवारी को मंज़िल तक सुरक्षित पहुंचाने के लिए जिस बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर है, निचले स्तर पर जिन चीज़ों की ज़रूरत है, उस पर ध्यान देने की ज़रूरत है. भारतीय रेलवे से औसतन 25 लाख लोग रोज़ाना सफर करते हैं. सरकार बुलेट ट्रेन में, वंदे भारत एक्सप्रेस में निवेश कर रही है. रेलवे यात्री सुरक्षा पर कम ध्यान दे रहा है.” वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, "प्रधानमंत्री और रेल मंत्री से पूछने के लिए हमारे पास बहुत सवाल हैं, लेकिन अभी ज़रूरत बचाव और राहत कार्य की है." लालू यादव ने की जांच की मांग हादसे पर टिप्पणी करते हुए पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने कहा है कि जिन लोगों ने रेलवे व्यवस्था को चौपट कर दिया है उन्हें बख़्शा नहीं जाना चाहिए. लालू यादव ने कहा, “कोरोमंडल एक बहुत तेज़ रफ़्तार ट्रेन है जो चेन्नई तक जाती है. हमने भी इस ट्रेन में यात्रा की है. किस तरह से लापरवाही बरती गई और इतना बड़ा हादसा हुआ, इसकी जांच होनी चाहिए और ज़िम्मेदार लोगों पर कार्रवाई की जानी चाहिए. रेल को चौपट कर दिया है.” हादसे के बाद सोशल मीडिया पर कई लोग सावल उठा रहे हैं और कुछ राजनीतिक पार्टियां रेल मंत्री के इस्तीफ़े की मांग कर रहे हैं. लोग भारत में रेल मंत्रियों के इस्तीफ़ों के पुराने वाकयों का हवाला देकर रेल मंत्री का इस्तीफ़ा मांग कर रहे हैं. हादसे के बाद रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव शुक्रवार रात को ही घटनास्थल के लिए रवाना हो गए थे. घटनास्थल के क़रीब मीडिया को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, "इस तरह के हादसे दोबारा ना हो इसकी कोशिश की जाएगी." लेकिन सवाल ये भी है कि नैतिक आधार पर इस्तीफ़ा देने से क्या वाक़ई स्थिति में सुधार आता है? वरिष्ठ पत्रकार और लंबे समय से रेलवे पर रिपोर्ट करने वाले शिशिर सोनी मानते हैं कि मंत्री के इस्तीफ़े का सुरक्षा में सुधार से कोई सीधा संबंध नहीं हैं. सोनी मानते हैं कि अगर ज़रूरत है तो वो सुरक्षा के लिए बनाई गई योजनाओं को तेज़ी से लागू करने की है. सोनी कहते हैं, "बहुत दिनों के बाद इतना बड़ा हादसा हुआ है. 1981 के बाद तीन ट्रेनें एक साथ टकराई हैं. ये हादसा ऐसे समय में हुआ है जब भारत में रेलवे सुरक्षा को लेकर काफी काम चल रहा है." वो कहते हैं, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेशनल रेल प्लान के तहत भी बड़ी राशि रेलवे में हादसे रोकने के लिए प्रस्तावित की है. इसके तहत हर ट्रेन में टक्कर रोधी यंत्र (एंटी कॉलिज़न डिवाइस) लगाए जाने हैं. लेकिन अभी तक इसका टेंडर भी जारी नहीं हुआ है." "टेंडर जारी होने की समयसीमा दो साल रखी गई थी और टेंडर के बाद पांच साल के भीतर इसे भारत के समूचे रेल नेटवर्क पर ये यंत्र लग जाने थे. इसे लगने में काफ़ी समय लग रहा है. सरकार को सुरक्षा को लेकर तुरंत क़दम उठाने चाहिए." वहीं एक तर्क ये भी दिया जा रहा है कि पूर्ण बहुमत वाली सरकार किसी दबाव को महसूस नहीं करती और इसलिए ही उसके मंत्री इस्तीफ़ा नहीं देते. वरिष्ठ पत्रकार जयशंकर गुप्त कहते हैं, "किसी तरह का नैतिक दबाव ये सरकार और इसके मंत्री महसूस नहीं करते हैं. ये स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है इससे पहले लाल बहादुर शास्त्री ने इस्तीफ़ा दिया था, नीतीश कुमार ने भी दिया था, बाद में उन्होंने इसे वापस ले लिया था. पहले लोग ज़िम्मेदारी महसूस करते थे लेकिन इस सरकार में ये नैतिकता दिखाई नहीं देती." क्या दबाव बढ़ने के बाद रेल मंत्री इस्तीफ़ा दे सकते हैं? इस सवाल पर जयशंकर गुप्त कहते हैं, "इस सरकार में इस्तीफ़े नहीं होते हैं, ना ही ऐसी कोई परंपरा है. ऐसे में ये कहा जा सकता है कि मंत्री इस्तीफ़ा नहीं देंगे. आगे किसी और कारण से उन्हें हटा दिया जाए, ये अलग बात है." हालांकि वो ये भी कहते हैं कि इतने बड़े हादसे के बाद रेल मंत्री को इस्तीफ़ा दे देना चाहिए था और जांच घोषित हो जानी चाहिए थी. गुप्त कहते हैं, "तीन रेलगाड़ियां की भीषण टक्कर हुई है, लेकिन कोई नैतिक ज़िम्मेदारी लेता हुआ नहीं दिख रहा. हाल के सालों में रेलवे का किराया तो बढ़ा है लेकिन यात्रियों की सुरक्षा घटी है क्योंकि जवाबदेही नाम की कोई चीज़ नहीं है." कवच सिस्टम को लेकर सवाल इस हादसे के बाद से विपक्ष ने भी सरकार से रेलवे सुरक्षा की महत्वकांक्षी एंटी कॉलिज़न डिवाइस परियोजना कवच सिस्टम को लेकर भी सवाल उठाए हैं. रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने मार्च 2022 में कवच सिस्टम को लांच करते हुए दावा किया था कि ये सुरक्षा सिस्टम यूरोपीय सिस्टम से भी बेहतर है. रेल मंत्री ने कहा था, “कवच आटोमैटिक ट्रेन प्रोटेक्शन टेक्नोलॉजी है, अगर दो ट्रेन गलती से एक ही ट्रैक पर आ जाएंगी तो कवच टकराने से पहले स्वतः ब्रेक लगा देगा.“ अश्विनी वैष्णव ने आमने-सामने आ रही ट्रेन में बैठकर इस सिस्टम को परखा था और इसके बाद इस सिस्टम को पेश करते हुए कहा था, "मैं खुद इंजीनियर हूं, मुझे तकनीक पर भरोसा था इसलिए मैंने ये ख़तरा उठाया था." ओडिशा हादसे के बाद रेलवे प्रवक्ता अमिताभ शर्मा ने कहा है कि इस रूट पर कवच उपलब्ध नहीं था. विश्लेषक ये भी मान रहे हैं कि हाल के सालों में प्रधानमंत्री मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट वंदे भारत एक्सप्रेस पर रेलवे ने अधिक ध्यान दिया है और अन्य ट्रेनों और सुरक्षा की अनदेखी हुई है. जयशंकर गुप्त कहते हैं, "रेल मंत्री और समूचे रेलवे का ध्यान इस समय वंदे भारत एक्सप्रेस पर हैं. रेल सुरक्षा को मज़बूत करने पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. हादसे होते हैं, ख़बरें बनती हैं, लेकिन ना कभी किसी की ज़िम्मेदारी तय की जाती है और ना ही उस पर कभी चर्चा होती है." गुप्त कहते हैं, "इस समय रेलवे का पूरा ध्यान वंदे भारत एक्सप्रेस पर है जिसका किराया दूसरी ट्रेनों के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा है." हादसों की जांच लेकिन नतीजा कुछ नहीं भारतीय रेलवे के हादसा प्रोटोकॉल के तहत हर रेल हादसे की जांच की जाती है और उसकी रिपोर्ट पेश की जाती है. भारतीय रेलवे में सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए रेलवे सुरक्षा आयोग है जो रेलवे मंत्रालय से स्वतंत्र नागरिक उड्डयन मंत्रालय के तहत काम करता है. इस आयोग की ज़िम्मेदारी है- यात्रियों के लिए शुरू करने से पहले हर रेलवे लाइन की सुरक्षा जांच करना रेल लाइनों का समय-समय पर निरीक्षण करना यात्री ट्रेनों के संचालन को प्रभावित करने वाले नये कार्यों और नवीनीकरण की स्वीकृति देना हादसों की जांच करना रेलवे हादसों की जांच के नियम निर्धारित हैं और रेलवे एक्ट 1989 की धारा 13 के तहत हर गंभीर हादसे के बाद जांच अनिवार्य है. भारत में रेलवे हादसे होते रहे हैं, उनकी जांच भी होती रही है. लेकिन सख़्त कार्रवाई के उदाहरण कम ही मिलते हैं. शिशिर सोनी कहते हैं, "हर हादसे के बाद जो जांच होती हैं, उनके नतीजे क्या रहे, सरकार ने क्या क़दम उठाये, ये कभी सार्वजनिक नहीं होता. अगला हादसा होने तक लोग हादसे को भूल जाते हैं. छह महीने में ये लोगों के दिमाग़ से निकल जाता है, एक साल बाद तो किसी को याद भी नहीं रहता कि हादसा हुआ था. पत्रकारों की भी ज़िम्मेदारी है, लगातार सवाल उठाने की, फॉलो अप करने की, लेकिन ऐसा होता नहीं है." सोनी कहते हैं कि अगर पहले हुए हादसों की जांच रिपोर्टों को गंभीरता से लिया गया होता, कोई कदम उठाया गया होता तो हादसों में कमी ज़रूर आई होती कब-कब रेल मंत्री ने दिया इस्तीफ़ा? 1956- लाल बहादुर शास्त्री अगस्त 1956 में आंध्र प्रदेश के महबूबनगर में हुए एक रेल हादसे में 112 लोगों की मौत के बाद तत्कालीन रेलमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इस्तीफ़े की पेशकश की लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इसे अस्वीकार कर दिया. इसके कुछ ही महीने बाद नवंबर 1956 में तमिलनाडु में हुए एक रेल हादसे में 144 लोग मारे गए. इस बार लाल बहादुर शास्त्री ने इस्तीफ़े के साथ इसे जल्द स्वीकार करने का अनुरोध भी किया. उनका इस्तीफ़ा स्वीकार कर लिया गया. लाल बहादुर शास्त्री के इस इस्तीफ़े को भारतीय राजनीति में नैतिक ज़िम्मेदारी के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण के रूप में पेश किया जाता है. 1999- नीतीश कुमार इसके आगे के दशकों में रेल हादसे तो होते रहे लेकिन कभी किसी मंत्री ने इस्तीफ़ा नहीं दिया. इसके 43 साल बाद नीतीश कुमार ने साल 1999 में असम के गैसल में हुए रेल हादसे की नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए इस्तीफ़ा दे दिया था. इस हादसे में 290 लोगों की जान गई थी. अब तक भारत के दो ही रेल मंत्रियों के इस्तीफ़े स्वीकार किए गए हैं. लेकिन इस्तीफ़ों की पेशकश होती रही है. 2000- ममता बनर्जी साल 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की सरकार में रेल मंत्री ममता बनर्जी ने पंजाब में हुए रेल हादसे के बाद नैतिक आधार पर इस्तीफ़े की पेशकश की थी जिसे प्रधानमंत्री ने नकार दिया था. 2017-सुरेश प्रभु 2017 में तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने एक के बाद एक हुए कई हादसों की नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए अपने इस्तीफ़े की पेशकश की थी, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अस्वीकार कर दिया था.
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